+ शोधन कहाँ करना चाहिए ? -
मणवयणकायजोगेणुप्पण्णवराध जस्स गच्छम्मि
मिच्छाकारं किच्चा णियत्तणं होदि कायव्वं ॥176॥
अन्वयार्थ : जिस गच्छ गण या चतुर्विध-संघ में व्रतादिकों में अतिचार रूप अपराध हुआ है उसी संघ में उस मुनि को मिथ्याकार पश्चात्ताप करके अपने अंतरंग से वह दोष निकाल देना चाहिए अथवा जिस किसी के साथ अपराध हो गया हो, उन्हीं से क्षमा कराके उस अपराध से अपने को दूर करना होता है ।