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आगन्तुक मुनि द्वारा वन्दना आदि क्रियाएँ
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दिवसियरादियपक्खियचाउम्मासियवरिस्सकिरियासु
रिसिदेववंदणादिसु सहजोगो होदि कायव्वो ॥175॥
अन्वयार्थ :
दैवसिक, रात्रिक, पाक्षिक, चातुर्मासिक, वार्षिक प्रतिक्रमण क्रियाओं में गुरु-वन्दना और देव-वन्दना आदि के साथ ही मिलकर करना चाहिए ।