+ तीर्यंच को कोई शरण नहीं -
अण्णोण्णं खज्जंता तिरियां पावंति दारुणं दुक्खं
माया वि जत्थ भक्खदि अण्णो को तत्थ रक्खेदि ॥42॥
अन्वयार्थ : [तिरिया अण्‍णोण्‍णं खज्‍जंता] यह तिर्यंच [जीव] परस्‍पर में खाये जाने का [दारूणं दुक्‍खं पावंति] उत्‍कृष्‍ट दु:ख पाता है [जत्‍थ माया वि भक्‍खदि] जहाँ जिसके गर्भ में उत्‍पन्‍न हुआ ऐसी माता भी भक्षण कर जाती है [तत्‍थ अण्‍णो को रक्‍खदि] वहाँ दूसरा कौन रक्षा करे ?

  छाबडा