+ तीर्यंच सभी अवस्थाओं में दुखी -
तिरिएहिं खज्जमाणो दुट्ठ-मणुस्सेहिं हण्णमाणो वि
सव्वत्थ वि संतट्ठो भय-दुक्खं विसहदे भीमं ॥41॥
अन्वयार्थ : (उस तिर्यचगति में यह जीव) [तिरिएहिं खज्‍जमाणो] सिंह-व्‍याघ्रादिक से खाये जाने का [वि दुठ्टमणुस्‍सेहिं हण्‍णमाणो] तथा दृष्‍ट मनुष्‍य, म्‍लेच्‍छ व्‍याध धीवरादिक से मारे जाने का [सव्‍वत्‍थ वि संतठ्टो] सब जगह दुखी होता हुआ [भीमं भयदुक्‍खं विसहदे] रोद्र भयानक दु:ख को विशेषरूप से सहता हैं ।

  छाबडा