+ पुरुषार्थ-सिद्धि का उपाय -
विपरीताभिनिवेशं निरस्य सम्यग्व्यवस्य निजतत्त्वम्‌ ।
यत्तस्मादविचलनं स एव पुरुषार्थसिद्ध्युपायोऽयम् ॥15॥
विपरीताभिनिवेश नष्ट कर निजस्वरूप का सम्यक्‌ज्ञान ।
निज में ही अविचल थिरता पुरुषार्थ-सिद्धि का यही उपाय ॥१५॥
अन्वयार्थ : [विपरीताभिनिवेशं] विपरीत श्रद्धान का [निरस्य] नाश करके [निज-तत्त्वम्‌] निजस्वरूप को [सम्यक्‌] यथार्थरूप से [व्यवस्य] जानकर [यत्‌] जो [तस्मात्‌] अपने उस स्वरूप में से [अविचलनं] भ्रष्ट न होना [स एव] वही [अयं] इस [पुरुषार्थसिद्ध्युपाय:] पुरुषार्थसिद्धि का उपाय है ।
Meaning : Having got rid of the above perversity and having well realized the nature of the Self, steadfastness therein is the means to the acquisition of the object of Jiva.

  टोडरमल