
कृच्छे्रण सुखावाप्तिर्भवन्ति सुखिनो हताः सुखिन एव ।
इति तर्कमण्डलाग्रः सुखिनां घाताय नादेयः ॥86॥
सुख प्राप्त होता कष्ट से, सुख युक्त मरते सुखी ही ।
पर लोक में यों कुतर्क असि से, सुखी को मारो नहीं ॥८६॥
अन्वयार्थ : [सुखावाप्ति: कृच्छ्रेण] 'सुख की प्राप्ति कष्ट से होती है; अत: [हता: सुखिन:] मारने में आए हुए सुखी जीव [सुखिन: एव भवन्ति] परलोक में सुखी ही होंगे', [इति तर्कमण्डलाग्र:] इस प्रकार कुतर्क की तलवार [सुखिनां घाताय नादेय:] सुखी जीवों के घात को न अंगीकारे ।
Meaning : It is difficult to obtain happiness. The happy shall, if killed, continue to be happy. Do not please adopt the weapon of this reasoning for killing those who are happy.
टोडरमल