+ मंगलाचरण और प्रतिज्ञावाक्‍य -
णमिऊण सव्‍वसिद्धे, झाणुत्‍तमखविददीहसंसारे।
दस दस दो दो व जिणे, दस दो अणुपेहणं वोच्‍छे ॥1॥
अन्वयार्थ : जिन्‍होंने उत्‍तम ध्‍यान के द्वारा दीर्घ संसार का नाश कर दिया है ऐसे समस्‍त सिद्धों तथा चौबीस तीर्थंकरों को नमस्‍कार कर बारह अनुप्रेक्षाओं को कहूँगा ॥१॥