परमट्ठेण दु आदा, देवासुरमणुवरायविभवेहिं ।
वदिरित्तो सो अप्पा, सस्सदमिदि चिंतए णिच्चं ॥7॥
अन्वयार्थ :
परमार्थ से आत्मा देव, असुर और नरेंद्रों के वैभवों से भिन्न है और वह आत्मा शाश्वत है ऐसा निरंतर चिंतन करना चाहिए ॥७॥