जीवणिबद्धं देहं, खीरोदयमिव विणस्‍सदे सिग्‍घं ।
भोगोपभोगकारणदव्‍वं णिच्‍चं कहं होदि ॥6॥
अन्वयार्थ : जब दूध और पानी की तरह जीव के साथ मिला हुआ शरीर शीघ्र नष्‍ट हो जाता है तब भोगोपभोग का कारणभूत द्रव्‍य -- स्‍त्री आदि परिकर नित्‍य कैसे हो सकता है? ॥६॥