सग्‍गो हवे हि दुग्‍गं, भिच्‍चा देवा य पहरणं वज्‍जं ।
अइरावणो गइंदो, इंदस्‍स ण विज्‍जदे सरणं ॥9॥
अन्वयार्थ : स्‍वर्ग ही जिसका किला है, देव सेवक हैं, वज्र शस्‍त्र है और ऐरावत गजराज है उस इंद्रका भी कोई शरण नहीं है—उसे भी मृत्‍यु से बचाने वाला कोई नहीं है ॥९॥