संजोगविप्पजोगं, लाहालाहं सुहं च दुक्खं च ।
संसारे भूदाणं, होदि हु माणं तहावमाणं च ॥36॥
अन्वयार्थ :
संसार में जीवों को संयोग वियोग, लाभ अलाभ, सुख दु:ख तथा मान अपमान प्राप्त होते हैं॥३६॥