कम्मणिमित्तं जीवो, हिंडदि संसारघोरकांतारे ।
जीवस्स ण संसारो, णिच्चयणयकम्मविम्मुक्को ॥37॥
अन्वयार्थ :
कर्मों के निमित्त से यह जीव संसाररूपी भयानक वन में भ्रमण करता है, किंतु निश्चय नयसे जीव कर्मों से रहित है इसलिए उसका संसार भी नहीं है ॥३७॥