रागो दोसो मोहो, हास्‍सादिणोकसायपरिणामो ।
थूलो वा सुहुमो वा, असुहमणो त्ति य जिणा वेंति ॥52॥
अन्वयार्थ : राग, द्वेष, मोह तथा हास्‍यादिक नोकषायरूप परिणाम चाहे स्‍थूल हों चाहे सूक्ष्‍म, अशुभ मन है ऐसा जिनेंद्रदेव जानते हैं ॥५२॥