किण्हादि तिण्णि लेस्सा, करणजसोक्खेसु सिद्धपरिणामो ।
ईसा विसादभावो, असुहमणं त्ति य जिणा वेंति ॥51॥
अन्वयार्थ :
कृष्णादि तीन लेश्याएँ, इंद्रियजन्य सुखों में तीव्र लालसा, ईर्ष्या तथा विषादभाव अशुभ मन है ऐसा जिनेंद्रदेव जानते हैं ॥५१॥