मोत्‍तूण असुहभावं, पुव्‍वुत्‍तं णिरवसेसदो दव्‍वं ।
वदसमिदिसीलसंजमपरिणामं सुहमणं जाणे ॥54॥
अन्वयार्थ : पहले कहे हुए अशुभ भाव तथा अशुभ द्रव्‍य को व्रत, समिति, शील और संयमरूप परिणामों का होना शुभ मन है ऐसा जानों ॥५४॥