संसारछेदकारणवयणं सुहवयणमिदि जिणुद्दिट्ठं ।
जिणदेवादिसु पूजा, सुहकायं त्तिय हवे चेट्ठा ॥55॥
अन्वयार्थ : जो वचन संसार का छेद करने में कारण है वह शुभ वचन है ऐसा जिनेंद्र भगवान् ने कहा है। तथा जिनेंद्रदेव आदि की पूजारूप जो चेष्टा---शरीर की प्रवृत्ति है वह शुभकाय है ॥५५॥