
सव्वंगं पेच्छंतो, इत्थीणं तासु मुयदि दुब्भावं ।
सो बम्हचेरभावं, सक्कदि खलु दुद्धरं धरिदुं ॥80॥
अन्वयार्थ : जो स्त्रियों के सब अंगों को देखता हुआ उनमें खोटे भाव को छोड़ता है अर्थात् किसी प्रकार के विकार भाव को प्राप्त नहीं होता वह निश्चय से अत्यंत कठिन ब्रह्मचर्य धर्म को धारण करने के लिए समर्थ होता है ॥८०॥