+ आकिंचन्‍य धर्म का लक्षण -
होऊण य णिस्‍संगो, णियभावं णिग्‍गहित्‍तु सुहदुहदं ।
णिद्दंदेण दु वहदि, अणयारो तस्‍स अकिंचण्‍हं ॥79॥
अन्वयार्थ : जो मुनि नि:संग-निष्‍परिग्रह होकर सुख और दु:ख देने वाले अपने भावों का निग्रह करता हुआ निर्द्वंद्व रहता है अर्थात् किसी इष्‍ट-अनिष्‍ट के विकल्‍प में नहीं पड़ता उसके आकिंचन्‍य धर्म होता है ॥७९॥