+ समारोप -
इदि णिच्‍छयववहारं, जं भणियं कुंदकुंदमुणिणाहे ।
जो भावइ सुद्धमणो, सो पावइ परमणिव्‍वाणं ॥91॥
अन्वयार्थ : इस प्रकार कुंदकुंद मुनिराज ने निश्‍चय और व्‍यवहार का आलंबन लेकर जो कहा है, शुद्ध हृदय होकर जो उसकी भावना करता है वह परम निर्वाण को प्राप्‍त होता है ॥९१॥

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