+ चरणानुयोग -
गृहमेध्यनगाराणां चारित्रोत्पत्तिवृद्धिरक्षाङ्‍गम्
चरणानुयोगसमयं सम्यग्ज्ञानं विजानाति ॥4॥
अन्वयार्थ : [सम्यग्ज्ञानं] भावश्रुतरूप सम्यग्ज्ञान [गृहमेध्य] गृहस्थ और [अनगाराणां] मुनियों के [चारित्त्र] चरित्र की [उत्पति] उत्पत्ति, [वृद्धि] वृद्धि और [रक्षाङ्‍गम्] रक्षा के कारणभूत [चरणानुयोग] चरणानुयोग [समयं] शास्त्र को [विजानाति] जानता है ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

तथा-
सम्यग्ज्ञानं भावश्रुतरूपम् । विजानाति विशेषेण जानाति । कम् ? चरणानुयोगसमयं चारित्रप्रतिपादकं शास्त्रमाचाराङ्गादि । कथम्भूतम् ? चारित्रोत्पत्तिवृद्धिरक्षाङ्गं चारित्रस्योत्पत्तिश्च वृद्धिश्च रक्षा च तासामङ्गं कारणम् अङ्गानि वा कारणानि प्ररूप्यन्ते यत्र। केषां तदङ्गम्? गृहमेध्यनगाराणां गृहमेधिन: श्रावका: अनगारा मुनयस्तेषाम् ॥४॥
आदिमति :

सम्यग्ज्ञान चरणानुयोग को भी जानता है । चारित्र का प्रतिपादन करने वाले आचारांग आदि शास्त्र चरणानुयोग शास्त्र कहलाते हैं । इन शास्त्रों में गृहस्थ-श्रावक और मुनियों के चारित्र की उत्पत्ति, वृद्धि और रक्षा के कारणों का विशद वर्णन है । समीचीन श्रुतज्ञान इन सब शास्त्रों को विशेषरूप से जानता है ।