प्रभाचन्द्राचार्य :
[[गृहिणां]] सम्बन्धी यत् विकलं चरणं तत् [[त्रेधा]] त्रिप्रकारम् । [[तिष्ठति]] भवति । किं विशिष्टं सत् ? [[अणुगुणशिक्षाव्रतात्मकं]] सत् अणुव्रतरूपं गुणव्रतरूपं शिक्षाव्रतरूपं सत् । त्रयमेव । तत्प्रत्येकम् । [[यथासङ्ख्यम्]] । [[पञ्चत्रिचतुर्भेदमाख्यातं]] प्रतिपादितम् । तथाहि- अणुव्रतं पञ्चभेदं गुणव्रतं त्रिभेदं शिक्षाव्रतं चतुर्भेदमिति ॥ |
आदिमति :
गृहस्थों का जो विकल-चारित्र है, वह अणु-व्रत, गुण-व्रत और शिक्षा-व्रत के भेद से तीन प्रकार का है । उन तीनों में प्रत्येक के क्रम से पाँच भेद, तीन भेद और चार भेद कहे गये हैं । अर्थात् पाँच अणु-व्रत, तीन गुण-व्रत और चार शिक्षा-व्रत-रूप भेद जानने चाहिए । |