+ विकल चारित्र के भेद -
गृहिणां त्रेधा तिष्ठत्यणु-गुण शिक्षाव्रतात्मकं चरणं
पञ्च-त्रि-चतुर्भेदं त्रयं यथासंख्यमाख्यातम् ॥51॥
अन्वयार्थ : [गृहिणां] गृहस्थों का [चरणं] विकल-चारित्र [अणु-गुण-शिक्षाव्रतात्मकं] अणुव्रत, गुणव्रत, शिक्षाव्रत के भेद से [त्रेधा] तीन प्रकार का [तिष्ठति] है उन [त्रयं] तीनों मे [यथासंख्यं] प्रत्येक के क्रमश: [पञ्च-त्रि-चतुर्भेदं] पञ्च, तीन व चार भेद [अख्यातं] कहे गए हैं

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

[[गृहिणां]] सम्बन्धी यत् विकलं चरणं तत् [[त्रेधा]] त्रिप्रकारम् । [[तिष्ठति]] भवति । किं विशिष्टं सत् ? [[अणुगुणशिक्षाव्रतात्मकं]] सत् अणुव्रतरूपं गुणव्रतरूपं शिक्षाव्रतरूपं सत् । त्रयमेव । तत्प्रत्येकम् । [[यथासङ्ख्यम्]] । [[पञ्चत्रिचतुर्भेदमाख्यातं]] प्रतिपादितम् । तथाहि- अणुव्रतं पञ्चभेदं गुणव्रतं त्रिभेदं शिक्षाव्रतं चतुर्भेदमिति ॥
आदिमति :

गृहस्थों का जो विकल-चारित्र है, वह अणु-व्रत, गुण-व्रत और शिक्षा-व्रत के भेद से तीन प्रकार का है । उन तीनों में प्रत्येक के क्रम से पाँच भेद, तीन भेद और चार भेद कहे गये हैं । अर्थात् पाँच अणु-व्रत, तीन गुण-व्रत और चार शिक्षा-व्रत-रूप भेद जानने चाहिए ।