+ चारित्र के भेद और उपासक -
सकलं विकलं चरणं, तत्सकलं सर्वसङ्गविरतानाम्
अनगाराणां विकलं, सागाराणां ससङ्गानाम् ॥50॥
अन्वयार्थ : [चरणं] चारित्र दो प्रकार का कहा है -- [सकलं विकलं] सकल-चारित्र और विकल-चारित्र । [तत्] इनमें सकल चारित्र तो [सर्व] सम्पूर्ण [सङ्ग] परिग्रह से [विरतानाम्] विरक्त, ऐसे [अनगाराणां] मुनि को कहा है और विकल-चारित्र को [ससङ्गानाम्] परिग्रह सहित [सागाराणां] गृहस्थ धारण करते हैं ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

हिंसादिविरतिलक्षणं [[यच्चरणं]] प्राक्प्ररूपितं तत् सकलं विकलं च भवति । तत्र [[सकलं]] परिपूर्णं महाव्रतरूपम् । केषां तद्भवति ? [[अनगाराणां]] मुनीनाम् । किंविशिष्टानां [[सर्वसङ्गविरतानां]] बाह्याभ्यन्तरपरिग्रहरहितानाम् । [[विकलं]] परिपूर्णम् अणुव्रतरूपम् । केषां तद्भवति [[सागाराणां]] गृहस्थानाम् । कथम्भूतानाम् । कथम्भूतानाम् ? [[ससङ्गानां]] सग्रन्थानाम् ॥
आदिमति :

हिंसादि पापों के त्याग-रूप लक्षण से युक्त जिस चारित्र का पहले वर्णन किया है वह चारित्र सकल और विकल के भेद से दो प्रकार का होता है । उनमें सकल-चारित्र परिपूर्ण महा-व्रत-रूप कहा है, जो बाह्य और आभ्यन्तर समस्त परिग्रह के त्यागी मुनियों के होता है । विकल-चारित्र देश-चारित्र-रूप है, जो पंच अणु-व्रत के धारक परिग्रह से सहित गृहस्थों के होता है ।