+ ब्रह्मचर्याणुव्रत के अतिचार -
अन्यविवाहाकरणानङ्‍गक्रीडाविटत्वविपुलतृषः
इत्वरिकागमनं चास्मरस्य पञ्च व्यतीचाराः ॥60॥
अन्वयार्थ : [अन्याविवाहाकरण] अपने व आश्रित कि संतान को छोड़कर अन्य का विवाह कराना, [अनंगक्रीडा] कामसेवन के निश्चित अंगो को छोड़कर अन्य अंगो से सेवन करना, [विटत्व] शरीर से कुचेष्टा करना, मुख से अश्लील शब्द बोलना [विपुलतृषः] कामसेवन की तीव्र अभिलाषा होना [इत्वरिकागमनं] व्याभिचारिणी स्त्री / वेश्यादि के पास आना जाना, ये पांच [अस्मरस्य] ब्रह्मचर्य अणुव्रत के अतिचार हैं ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

[[अस्मरस्या]] ब्रह्मनिवृत्त्यणुव्रतस्य । पञ्च व्यतीचारा: । कथमित्याह- अन्येत्यादि- कन्यादानं विवाहोऽन्यस्य विवाहोऽन्यविवाह: तस्य आ समन्तात् करणं, तच्च अनङ्गक्रीडा च अङ्गं लिङ्गं योनिश्च तयोरन्यत्र मुखादिप्रदेशे क्रीडा अनङ्गक्रीडा । विटत्वं भण्डिमाप्रधानकायवाक्प्रयोग: । विपुलतृट् च कामतीव्राभिनिवेश: । इत्वरिकागमनं च परपुरुषानेति गच्छतीत्येवंशीला इत्वरी पुंश्चली कुत्सायां के कृते इत्वरिका भवति तत्र गमनं चेति ॥
आदिमति :

ब्रह्मचर्याणुव्रत के पाँच अतिचार हैं --
  • अन्यविवाहाकरण कन्यादान को विवाह कहते हैं । अपनी या अपने आश्रित बन्धुजनों की सन्तान को छोडक़र अन्य लोगों की सन्तान का विवाह प्रमुख बनकर करना, वह अन्य विवाहाकरण है । किन्तु सहधर्मी भाई के नाते उनके विवाह में सम्मिलित होने में कोई निषेध नहीं है ।
  • अनंगक्रीडा कामसेवन के निश्चित अंगों को छोडक़र अन्य अंगों से क्रीड़ा करना ।
  • विटत्व शरीर से कुचेष्टा करना और मुख से अश्‍लील भद्दे शब्दों का प्रयोग करना विटत्व है ।
  • विपुलतृषा कामसेवन की तीव्र अभिलाषा रखना विपुलतृषा है ।
  • इत्वरिकागमन परपुरुषरत व्यभिचारिणी स्त्री को इत्वरिका कहते हैं । ऐसी स्त्रियों के यहाँ आना-जाना, उनके साथ उठना-बैठना तथा व्यापारिक सम्पर्क बढ़ाना आदि इत्वरिका गमन है ।