+ परिग्रह परिमाण अणुव्रत -
धनधान्यादिग्रन्थं परिमाय ततोऽधिकेषु निःस्पृहता
परिमितपरिग्रहः स्यादिच्छापरिमाणनामापि ॥61॥
अन्वयार्थ : [धनधान्यादिग्रन्थं] धन, धान्यादि का परिग्रह [परिमाय] परिमाण कर [तत् अधिकेषु] उससे अधिक मे [निःस्पृहता] वांछा रहित होना [परिमितपरिग्रहः] परिमित परिग्रह या [इच्छापरिमाणनामापि] इच्छापरिमाण नामक अणुव्रत है ॥

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

[[परिमितपरिग्रहो]] देशत: परिग्रहविरतिरणुव्रतं स्यात् । कासौ ? या [[ततोऽधिकेषु निस्पृहता]] ततस्तेभ्य इच्छावशात् कृतपरिसङ्‍ख्यातेभ्योऽर्थेभ्योऽधिकेष्वर्थेषु या निस्पृहता वाञ्छाव्यावृत्ति: । किं कृत्वा ? [[परिमाय]] देवगुरुपादाग्रे परिमितं कृत्वा । कम् ? [[धनधान्यादिग्रन्थं]] धनं गवादि, धान्यं ब्रीह्यादि । आदिशब्दाद् दासीदासभार्यागृहक्षेत्रद्रव्यसुवर्णरूप्याभरणवस्त्रादिसङ्ग्रह: । स चासौ ग्रन्थश्च तं परिमाय । स च परिमितपरिग्रह: [[इच्छापरिमाण नामापि]] स्यात्, इच्छाया: परिमाणं यस्य स इच्छापरिमाणस्तन्नाम यस्य स तथोक्त: ॥
आदिमति :

परिग्रह का परिमाण करने वाला परिग्रह-परिमाणाणुव्रती कहलाता है । क्योंकि प्रमाण से अधिक में होने वाली इच्छा का निरोध हो गया । अपनी इच्छा से धन-गाय-भैंस आदि । धान्य- चावल आदि । तथा आदि शब्द से दासी-दास, स्त्री, मकान, नकद, द्रव्य, सोना, चाँदी आदि के आभूषण तथा वस्त्रादि के संग्रह-रूप परिग्रह की संख्या का परिमाण कर उससे अधिक वस्तु में वाञ्छा-इच्छा नहीं रखना, इसलिए इसका दूसरा नाम इच्छा-परिमाण-व्रत भी है ।