+ हिंसादान अनर्थदण्ड -
परशुकृपाणखनित्र-ज्वलनायुध-श्रृङ्‍गिश्रृङ्‍खलादीनाम्
वधहेतूनां दानं हिंसादानं ब्रुवन्ति बुधाः ॥77॥
अन्वयार्थ : [बुधाः] गणधरदेवादिक विज्ञपुरुष [परशु] फरसा, [कृपाण] तलवार, [खनित्र] कुदारी, [ज्वलनायुध] अग्नि, शस्त्र, [श्रृङ्‍गि] विष तथा [श्रृङ्‍खलादीनाम्] सांकल आदिक [वधहेतूनां] हिंसा के कारणों के [दानं] दान को [हिंसादानं] हिंसादान नाम का अनर्थदण्ड [ब्रुवन्ति] कहते हैं ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

अथ हिंसादानं किमित्याह --
हिंसादानं बु्रवन्ति । के ते ? बुधा गणधरदेवादय: किं तत् ? दानं । यत्केषाम् ? वधहेतूनां हिंसाकारणानाम् । केषां तत्कारणानामित्याह- परश्वि इत्यादि । परशुश्च कृपाणश्च खनित्रं च ज्वलनश्चाऽऽयुधानि च क्षुरिकालकुटादीनि शृङ्गि च विषसामान्यं शृङ्खला च ता आदयो येषां ते तथोक्तास्तेषाम् ॥
आदिमति :

हिंसा के उपकरण दूसरों को देना, इसे गणधरदेवादिकों ने हिंसादान कहा है । फरसा आदि को परशु कहते हैं । तलवार कृपाण है । पृथ्वी को खोदने के साधन कुदाली, फावड़ा आदि खनित्र कहे जाते हैं । अग्रि को ज्वलन कहते हैं। छुरी, लाठी आदि आयुध हैं । विषसामान्य को शृङ्गी कहते हैं और बन्धन का साधन सांकल है । ये सब हिंसा के कारण हैं । इनको दूसरों के लिए देना हिंसादान अनर्थदण्ड है, इसका त्याग करना हिंसादान अनर्थदण्डव्रत है ।