
प्रभाचन्द्राचार्य :
अथ हिंसादानं किमित्याह -- हिंसादानं बु्रवन्ति । के ते ? बुधा गणधरदेवादय: किं तत् ? दानं । यत्केषाम् ? वधहेतूनां हिंसाकारणानाम् । केषां तत्कारणानामित्याह- परश्वि इत्यादि । परशुश्च कृपाणश्च खनित्रं च ज्वलनश्चाऽऽयुधानि च क्षुरिकालकुटादीनि शृङ्गि च विषसामान्यं शृङ्खला च ता आदयो येषां ते तथोक्तास्तेषाम् ॥ |
आदिमति :
हिंसा के उपकरण दूसरों को देना, इसे गणधरदेवादिकों ने हिंसादान कहा है । फरसा आदि को परशु कहते हैं । तलवार कृपाण है । पृथ्वी को खोदने के साधन कुदाली, फावड़ा आदि खनित्र कहे जाते हैं । अग्रि को ज्वलन कहते हैं। छुरी, लाठी आदि आयुध हैं । विषसामान्य को शृङ्गी कहते हैं और बन्धन का साधन सांकल है । ये सब हिंसा के कारण हैं । इनको दूसरों के लिए देना हिंसादान अनर्थदण्ड है, इसका त्याग करना हिंसादान अनर्थदण्डव्रत है । |