
प्रभाचन्द्राचार्य :
इदानीमपध्यानस्वरूपं व्याख्यातुमाह -- अपध्यानं शासति प्रतिपादयन्ति । के ते ? विशदा विचक्षणा: । क्व ? जिनशासने । किं तत् ? आध्यानं चिन्तनम् । कस्य ? वधबन्धच्छेदादे: । कस्मात् ? द्वेषात् । न केवलं द्वेषादपि रागाद्वा ध्यानम् । कस्य ? परकलत्रादे: ॥ |
आदिमति :
द्वेष के वश किसी के मर जाने, बन्धन प्राप्त होने का अथव अंग-उपांगादि छिद जाने का और राग के कारण परस्त्री आदि का आध्यान बार-बार चिन्तन करना सो अपध्यान नामक अनर्थदण्ड है । ऐसा जिनशासन के ज्ञाता पुरुष कहते हैं । |