+ अन्य त्याज्य पदार्थ -
अल्पफलबहुविघातान् मूलकमार्द्राणि शृङ्‍गवेराणि
नवनीतनिम्बकुसुमं कैतकमित्येवमवहेयम् ॥85॥
अन्वयार्थ : [अल्पफल] फल थोड़ा और [बहुविघातात्] बहुत त्रस जीवों का विघात होने से [आर्द्राणि] सचित्त [मुलकम्] जमीकंद, [शृङ्‍गवेराणि] जहरीले / काँटों वाले बेर, [नवनीत] मक्खन, [निम्बकुसुमं] नीम के फूल और [कैतकम्] केतकी-केवड़ा के फूल [इति] इत्यादि [एवं] इसी प्रकार के अन्य पदार्थ [अवहेयम्] छोडऩे योग्य हैं ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

तथैतदपि तैस्त्याज्यमित्याह --
अवहेयं त्याज्यम् । किं तत् ? मूलकम् । तथा शृङ्गवेराणि आद्र्रकाणि । किं विशिष्टानि ? आद्र्राणि अशुष्काणि । तथा नवनीतं च । निम्बकुसुममित्युपलक्षणं सकलकुसुमविशेषाणां तेषाम् । तथा कैतकं केतक्या इदं कैतकं गुधरा इत्येवम्, इत्यादि सर्वमवहेयम् । कस्मात् अल्पफलबहुविघातात् । अल्पं फलं यस्यासावल्पफल:, बहूनां त्रसजीवानां विघातो विनाशो बहुविघात: अल्पफलश्चासौ बहुविघातश्च तस्मात् ॥३९॥

आदिमति :

मूली, गीला अर्थात् बिना सूखा अदरक तथा उपलक्षण से आलू, सकरकन्द, गाजर, अरबी इत्यादि मक्खन, नीम के फूल, उपलक्षण से सभी प्रकार के फूल तथा केवड़ा के फूल, इसी प्रकार और भी अन्य ऐसे पदार्थ जिनके सेवन से फल तो अल्प हो और बहुत जीवों का घात हो, वे छोडऩे योग्य हैं ।