
प्रभाचन्द्राचार्य :
मध्वादिर्भोगरूपोऽपि त्रसजन्तुवधहेतुत्वादणुव्रतधारिभिस्त्याज्य इत्याह -- वर्जनीयम् । किं तत् ? क्षौद्रं मधु । तथा पिशितं । किमर्थम् ? त्रसहतिपरिहरणार्थं त्रसानां द्वीन्द्रियादीनां हतिर्वधस्तत्परिहरणार्थम् । तथा मद्यं च वर्जनीयम् । किमर्थम् ? प्रमादपरिहृतये माता भार्येति विवेकाभाव: प्रमादस्तस्य परिहृतये परिहारार्थम् । कैरेतद्वर्जनीयम् ? शरणमुपयातै: शरणमुपगतै: । कौ ? जिनचरणौ श्रावकैस्त्याज्यमित्यर्थ: ॥ |
आदिमति :
जिनेन्द्र भगवान् के चरणों की शरण लेने वाले श्रावक को द्वीन्द्रियादि त्रस जीवों की हिंसा से बचने के लिए मधु और मांस का त्याग करना चाहिए तथा प्रमाद से बचने के लिए मदिरा-शराब का त्याग करना चाहिए । यह माता है या स्त्री इस प्रकार के विवेक के अभाव को प्रमाद कहते हैं । |