+ यम और नियम -
नियमो यमश्च विहितौ, द्वेधा भोगोपभोगसंहारात्
नियमः परिमितकालो, यावज्जीवं यमो ध्रियते ॥87॥
अन्वयार्थ : [भोगोपभोगसंहारात्] भोग और उपभोग के परिमाण का आश्रय कर [नियम:] नियम [च] और [यम:] यम [द्वेषा] दो प्रकार से [विहितौ] व्यवस्थापित हैं / प्रतिपादित हैं, उनमें [परिमितकाल:] जो काल के परिमाण से सहित है वह [नियम:] नियम है और जो [यावज्जीवं] जीवन-पर्यन्त के लिए [ध्रियते] धारण किया जाता है, वह [यम:] यम कहलाता है ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

तच्च द्विधा भिद्यत इति --
भोगोपभोगसंहारात् भोगोपभोगयो: संहारात् परिमाणात् तमाश्रित्य । द्वेधा विहितौ द्वाभ्यां प्रकाराभ्यां द्वेधा व्यवस्थापितौ । कौ ? नियमो यमच्चे त्येतौ । तत्र को नियम: कश्च यम इत्याह -- नियम: परिमितकालो वक्ष्यमाण: परिमित: कालो यस्य भोगोपगोभसंहारस्य स नियम: । यमश्च यावज्जीवं ध्रियते
आदिमति :

भोग और उपभोग का परिमाण यम और नियम के भेद से दो प्रकार का कहा गया है । जो परिमाण परिमितकाल के लिए अर्थात् समय की मर्यादा लेकर किया जाता है, वह नियम कहलाता है तथा जो जीवनपर्यन्त के लिए धारण किया जाता है वह यम कहलाता है ।