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भोजनवाहनशयनस्नानपवित्राङ्‍गरागकुसुमेषु
ताम्बूलवसनभूषणमन्मथसङ्‍गीतगीतेषु ॥88॥
अद्य दिवा रजनी वा पक्षो मासस्तथर्तुरयनं वा
इति कालपरिच्छित्त्या प्रत्याख्यानं भवेन्नियमः ॥89॥
अन्वयार्थ : भोजन, [वाहन] सवारी, [शयन] शय्या, स्नान, [पवित्राङ्‍गरागकुसुमेषु] पवित्र अंग में सुगन्ध पुष्पादिक धारण करना, [ताम्बूल] पान, [वसन] वस्त्र, [भूषण] आभूषण, [मन्मथ] काम-सेवन, [सङ्‍गीतगीतेषु] संगीत और गीत के विषय में, [अद्य] आज, [दिवा] एक दिन, [रजनी] एक रात, [वा] अथवा [पक्षो] एक पक्ष, [मास:] एक माह, [ऋतू:] एक ऋतु / दो माह [वा] अथवा [अयनम्] एक अयन / छह माह [इति] इस प्रकार [कालपरिच्छित्त्या] समय के विभागपूर्वक [प्रत्याख्यानं] त्याग करना [नियम:] नियम [भवेत्] होता है ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

तत्र परिमितकाले तत्संहारलक्षणनियमं दर्शयन्नाह --
युगलम् । नियमो भवेत् । किं तत् ? प्रत्याख्यानम् । कया ? कालपरिच्छित्या । तामेव कालपरिच्छित्तिं दर्शयन्नाह- अद्येत्यादि, अद्येत्ति प्रवर्तमानघटिकाप्रहरादिलक्षणकालपरिच्छित्त्या प्रत्याख्यानम्। तथा दिवेति । रजनी रात्रिरिति वा । मास इति वा । ऋतुरिति वा मासद्वयम्। अयनमिति वा षण्मासा । इत्येवं कालपरिच्छित्या प्रत्याख्यानम् । केष्वित्याह- भोजनेत्यादि भोजनं च वाहनं च घोटकादि, शयनं च पल्यङ्कादि, स्थानं च पवित्राङ्गरागश्च पवित्रश्चासावङ्गरागश्च कुङ्‍कुमादिविलेपनम् । उपलक्षणमेतदञ्जनतिलकादीनां पवित्रविशेषणं दोषापनयनार्थं तेनौषधाद्यङ्गरागो निरस्त: । कुसुमानि च तेषु विषयभूतेषु । तया ताम्बूलं च वसनं च वस्त्रं भूषणं च कटकादि मन्मथश्च कामसेवा सङ्गीतं च गीतनृत्यवादित्रत्रयं गीतं च केवलं नृत्यवाद्यरहितं तेषु च विषयेषु अद्येत्यादिरूपं कालपरिच्छित्त्या यत्प्रत्याख्यानं स नियम इति व्याख्यातम् ॥
आदिमति :

काल की मर्यादा लेकर जो प्रत्याख्यान-त्याग किया जाता है, वह नियम है । भोजन का अर्थ तो प्रसिद्ध है ही । घोड़ा आदि को वाहन कहते हैं । पलंग आदि शयन हैं । स्नान का अर्थ भी प्रसिद्ध ही है । केशर आदि के विलेपन को पवित्रांगराग कहते हैं । यह अंगराग अञ्जनतिलक आदि का उपलक्षण है । अंगराग के साथ जो पवित्र विशेषण है, वह दोषों को दूर करने के लिए दिया है । इससे सदोष औषधि और अंगराग का निराकरण हो जाता है । कुसुम-फूल । ताम्बूल-पान । वसन-वस्त्र । कटक-आभूषण को कहते हैं । कामसेवन को मन्मथ कहते हैं । जिसमें गीत नृत्य वादित्र तीनों हों, वह संगीत कहलाता है । जिसमें मात्र गीत ही हो, नृत्य वादित्र न हो, वह गीत कहलाता है । इन सभी के विषय में समय की मर्यादा लेकर जो त्याग किया जाता है, वह नियम कहलाता है । प्रवर्तमान समय में एक घड़ी, एक पहर आदि काल की मर्यादा लेकर त्याग करना, जैसे आज का त्याग है । दिन-रात तो प्रसिद्ध है । पन्द्रह दिन को पक्ष कहते हैं । तीस दिन को महीना कहते हैं । दो महीने की एक ऋतु होती है । छह मास को अयन कहते हैं । इस प्रकार समय की अवधि रखकर भोजन आदि का त्याग करना नियम कहलाता है ।