+ यह व्रत भी उपचार से महाव्रत है -
सीमान्तानां परतः स्थूलेतर पञ्चपापसंत्यागात्
देशावकाशिकेन च महाव्रतानि प्रसाध्यन्ते ॥95॥
अन्वयार्थ : [सीमान्तानां] सीमाओं के अन्तभाग के [परतः] आगे [स्थूल] स्थूल और [इतर] सूक्ष्म [पञ्चपाप] पाँचों पापों का [संत्यागात्] सम्यक् प्रकार त्याग हो जाने से [देशावकाशिकेन] देशावकाशिक-व्रत के द्वारा [महाव्रतानि] महाव्रत [प्रसाध्यन्ते] सिद्ध किये जाते हैं ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

एवं देशावकाशिकव्रते कृते सति तत: परत: किं स्यादित्याह --
प्रसाध्यन्ते व्यवस्थाप्यन्ते । कानि ? महाव्रतानि । केन ? देशावकाशिकेन च न केवलं दिग्विरत्यापितु देशावकाशिकेनापि । कुत: ? स्थूलेतरपञ्चपापसन्‍त्यागात् स्थूलेतराणि च तानि हिंसादिलक्षणपञ्चपापानि च तेषां सम्यक् त्यागात् । क्व ? सीमान्तानां परत: देशावकाशिकव्रतस्य सीमाभूता ये 'अन्ताधर्मा' गृहादय: संवत्सरादिविशेषा: तेषां वा अन्ता: पर्यन्तास्तेषां परत: परिस्मन् भागे ॥
आदिमति :

देशावकाशिकव्रत में गृह आदि और वर्ष, मास आदि काल की अपेक्षा जो सीमा निर्धारित की थी, उसके आगे स्थूल और सूक्ष्म दोनों प्रकार से हिंसादि पंच पापों का पूर्णरूप से त्याग हो जाने से सीमा के बाहर दिग्व्रत के समान देशावकाशिव्रत में महाव्रत की सिद्धि होती है ।