
प्रभाचन्द्राचार्य :
एवं देशावकाशिकस्वरूपं शिक्षाव्रतं व्याख्यायेदानीं सामायिकरूपं तद्व्याख्यातुमाह -- सामयिकं नाम स्फुटं शंसन्ति प्रतिपादयन्ति । के ते ? सामयिक: समयमागमं विन्दन्ति ये ते सामयिका गणधरदेवादय: । किं तत् ? मुक्तं मोचनं परिहरणं यत् तत् सामयिकम् । केषां मोचनम् ? पञ्चाघानां हिंसादिपञ्चपापानाम् । कथम् ? आसमयमुक्तिवक्ष्यमाणलक्षणसमयमोचनं आ-समन्ताद्व्याप्य गृहीतनियमकालमुक्तिं यावदित्यर्थ: । कथं तेषां मोचनम्? अशेषभावेन सामस्त्येन न पुनर्देशत: । सर्वत्र च अवधे: परभागे च । अनेन देशावकाशिकादस्य भेद: प्रतिपादित: ॥ |
आदिमति :
निश्चित समय की अवधि तक पंच पापों का पूर्णरूप से त्याग करने को गणधरदेवादि ने सामायिक नामक शिक्षाव्रत कहा है । देशावकाशिक व्रत में मर्यादा के बाहर क्षेत्र में पंच पापों का पूर्णरूप से त्याग होता है। किन्तु सामायिक शिक्षाव्रत में मर्यादा के भीतर-बाहर दोनों ही क्षेत्रों में पंच पापों का पूर्ण त्याग होता है, इस प्रकार से देशावकाशिक की अपेक्षा सामायिक शिक्षाव्रत में कहा गया है । |