
प्रभाचन्द्राचार्य :
तच्चैवंविधफलसम्पादकं दानं चतुर्भेदं भवतीत्याह -- वैयावृत्यं दानं बु्रवते प्रतिपादयति । कथम् ? चतुरात्मत्वेन चतु:प्रकारत्वेन । के ते ? चतुरस्रा: पण्डिता: । तानेव चतुष्प्रकारान् दर्शयन्नाहारेत्याद्याह- आहारश्च भक्तपानादि: औषधं च व्याधिस्फोटकं द्रव्यं तयोद्र्वयोरपि दानेन । न केवलं तयोरेव अपि तु उपकरणावासयोश्च उपकरणं ज्ञानोपकरणादि: आवासो वसतिकादि: ॥ |
आदिमति :
पण्डितों ने दान का चार प्रकार से निरूपण किया है । यथा -- आहार-भक्त-पानादि को आहार कहते हैं । रोग दूर करने वाले द्रव्य को औषधि कहते हैं । ज्ञानोपकरणादि को उपकरण कहते हैं । वसति आदि को आवास कहते हैं । इन चारों प्रकार की वस्तुओं की देने से वैयावृत्ति के चार प्रकार होते हैं । |