+ सल्लेखना की आवश्यकता -
अन्त:क्रियाधिकरणं, तप: फलं सकलदर्शिन: स्तुवते
तस्माद्यावद्विभवं समाधिमरणे प्रयतितव्यम् ॥123॥
अन्वयार्थ : [सकलदर्शिनः] सर्वज्ञदेव [अन्त: क्रियाधिकरणं] अन्त समय समाधिमरणस्वरुप सल्लेखना को [तपः फलं] तप का फल [स्तुवते] कहते हैं [तस्मात्] इसलिए [यावद्विभवं] यथाशक्ति [समाधिमरणे] समाधिमरण के विषय में [प्रयतितव्यम्] प्रयत्न करना चाहिए ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

सल्लेखनायां भव्यैर्नियमेन प्रयत्न: कत्र्तव्य:, यत :-
सकलदर्शिन: स्तुवते प्रशसन्ति । किं तत् ? तप:फलं तपस: फलं तप:फलं सफलं तप इत्यर्थ: । कथम्भूतं सत् ? अन्त:क्रियाधिकरणं अन्ते क्रियां संन्यास: तस्या अधिकरणं समाश्रयो यत्तपस्तत्फलम् । यत एवं, तस्माद्यावद्विभवं यथाशक्ति । समाधिमरणे प्रयतितव्यं प्रकृष्टो यत्न: कर्तव्य: ॥

आदिमति :

अन्तिम समय में यानी जीवन के अन्त में संन्यास धारण करना ही तप का फल है, तप की सफलता है, ऐसा सर्वज्ञदेव कहते हैं । अथवा सर्वदर्शी उसी तप के फल की प्रशंसा करते हैं, जो अन्त समय संन्यास का आश्रय लेता है । अत: समाधिमरण के लिए पूर्णरूप से प्रयत्न करना चाहिए ।