
प्रभाचन्द्राचार्य :
खरपानहापनामपि कृत्वा । कथम् ? शक्त्या स्वशक्तिमनतिक्रमेण स्तोकस्तोकतरादिरूपम् । पश्चादुपवासं कृत्वा तनुमपि त्यजेत् । कथम् ? सर्वयत्नेन सर्वस्मिन् व्रतसंयमचारित्रध्यानधारणादौ यत्नस्तात्पर्यं तेन । किंविशिष्ट: सन् ? पञ्चनमस्कारमना: पञ्चनमस्काराहितचित्त: ॥ |
आदिमति :
तत्पश्चात् उस गर्म जल का भी त्यागकर अपनी शक्ति का अतिक्रमण नहीं करके कुछ उपवास भी करे । और अन्त में यत्नपूर्वक व्रत-संयम-चारित्र, ध्यान-धारणादि सभी कार्यों में तत्पर रहते हुए पंचनमस्कार मंत्र में अपने चित्त को लगाते हुए शरीर को भी छोड़ देवे । |