+ भोजन के त्याग का क्रम -
आहारं परिहाप्य, क्रमश: स्निग्धं-विवर्द्धयेत्पानम्
स्निग्धं च हापयित्वा, खरपानं पूरयेत्क्रमश: ॥127॥
अन्वयार्थ : सल्लेखनाधारी को [क्रमशः] क्रम से [आहारं] अन्न के भोजन को [परिहाप्य] छोड़कर [स्निग्धं पानम् ] दूध आदि स्निग्ध पेय को [विवर्द्धयेत्] बढ़ाना चाहिए [च] पश्चात् [स्निग्धं] दूध आदि स्निग्ध पेय को [हापयित्वा] छोड़कर [खरपानं] गर्म जल को [पूरयेत्] बढ़ाना चाहिए ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

इदानीं सल्लेखनां कुर्वाणस्याहारत्यागे क्रमं दर्शयन्नाह-
स्निग्धं दुग्धादिरूपं पानम् । विवर्धयेत् परिपूर्णं दापयेत् । किं कृत्वा ? परिहाप्य परित्याज्य । कम् ? आहारं कवलाहाररूपम् । कथम् ? क्रमश: प्रागशनादिक्रमेण पश्चात् खरपानं कंजिकादि, शुद्धपानीयरूपं वा । किं कृत्वा ? हापयित्वा । किम् ? स्निग्धं च स्निग्धमपि पानकम् । कथम् ? क्रमश: । स्निग्धं हि परिहाप्य कञ्जिकादिरूपं खरपानं पूरयेत् विवर्धयेत् । पश्चात्तदपि परिहाप्य शुद्धपानीयरूपं खरपानं पूरयेदिति ॥

आदिमति :

सल्लेखना को ग्रहण करने वाला आहारादि को इस क्रम से छोड़े- पहले कवलाहाररूप दाल-भात, रोटी आदि आहार को छोड़े और दूध आदि स्निग्धरूप पेय पदार्थों को ग्रहण करे । पश्चात् उसे भी छोडक़र खरपान-चिकनाई से रहित पेय पदार्थों कांजी, छाछ आदि को ग्रहण करे । फिर उसे भी छोडक़र केवल गर्म जल ग्रहण करे ।