
प्रभाचन्द्राचार्य :
किं पुनर्नि:श्रेयसशब्देनोच्यत इत्याह- नि:श्रेयसमिष्यते । किम् ? निर्वाणम् । कथम्भूतं शुद्धसुखं शुद्धं प्रतिद्वन्द्वरहितं सुखं यत्र । तथा नित्यम् अविनश्वरस्वरूपम् । तथा परिमुक्तं रहितम् । कै: ? जन्मजरामयमरणै:, जन्म च पर्यायान्तरप्रादुर्भाव:, जरा च वाद्र्धक्यम्, आमयाश्च रोगा:, मरणं च शरीरादिप्रच्युति:। तथा शोकैर्दु:खैर्भयैश्च परिमुक्तम् ॥ |
आदिमति :
निर्वाण / मोक्ष को नि:श्रेयस कहते हैं । वहाँ पर शुद्ध सुख प्राप्त होता है, क्योंकि प्रतिपक्षी कर्मों का अभाव है । वह सुख नित्य अविनश्वर स्वरूप है तथा जन्म, बुढ़ापा, रोग और मरण से, शोक—दु:ख भयों से सर्वथा रहित है । एक पर्याय से दूसरी पर्याय की प्राप्ति को जन्म कहते हैं । बुढ़ापा को जरा कहते हैं । रोग को आमय कहते हैं । शरीर का छूटना मरण कहा जाता है । शोक, दु:ख, भय का अर्थ स्पष्ट ही है । |