+ मुक्तजीवों का लक्षण -
विद्यादर्शन-शक्ति-स्वास्थ्यप्रह्लादतृप्तिशुद्धियुज:
निरतिशया निरवधयो, नि:श्रेयसमावसन्ति सुखम् ॥132॥
अन्वयार्थ : [विद्यादर्शनशक्ति] केवलज्ञान, केवलदर्शन, अनन्तवीर्य [स्वास्थ्यप्रह्लाद] परम उदासीनता, अनंतसुख [तृप्तिशुद्धियुजः] तृप्ति और शुद्धि को प्राप्त [निरतिशया:] हिनाधिकता रहित और [निरवधय:] अवधि से रहित जीव [सुखम्] सुखस्वरूप [निःश्रेयसम्] मोक्षरुप निःश्रेयस में [आवसन्ति] निवास करते हैं ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

इत्थम्भूते च नि:श्रेयसे कीदृशा: पुरुषा: तिष्ठन्तीत्याह-
नि:श्रेयसमावसन्ति नि:श्रेयसे तिष्ठन्ति । के ते इत्याह- विद्येत्यादि । विद्या केवलज्ञानं, दर्शनं केवलदर्शनं, शक्तिरनन्तवीर्यं, स्वास्थ्यं परमोदासीनता, प्रह्लादोऽनन्तसौख्यं, तृप्तिर्विषयानाकाङ्क्षा, शुद्धिद्र्रव्यभावस्वरूपकर्ममलरहितता, एता युञ्जन्ति आत्मसम्बद्धा: कुर्वन्ति ये ते तथोक्ता: । तथा निरतिशया अतिशयाद्विद्यादिगुणहीनाधिकभावान्निष्क्रान्ता: । तथा निरवधयो नियतकालावधिरहिता: । इत्थम्भूता ये ते नि:श्रेयसमावसन्ति । सुखं सुखरूपं नि:श्रेयसम् । अथवा सुखं यथा भवत्येवं ते तत्रावसन्ति ॥
आदिमति :

नि:श्रेयस—मोक्ष में वे जीव रहते हैं, जो विद्या—केवलज्ञान, दर्शन—केवलदर्शन, शक्ति—अनन्तवीर्य, स्वास्थ्य—परम उदसीनता, प्रह्लाद—अनन्तसुख, तृप्ति—विषयों की आकाङ्क्षा का अभाव, शुद्धि—द्रव्यकर्म-भावकर्म-नोकर्म से रहितपना, इन सभी से युक्त हैं । निरतिशय—विद्या आदि गुणों की हीनाधिकता से रहित हैं और निरवधि—काल की अवधि से रहित हैं । जो इन सब विशेषणों से युक्त हैं, वे जीव नि:श्रेयस में सुख से निवास करते हैं ।