+ ब्रह्मचर्य प्रतिमा -
मलबीजं मलयोनिं, गलन्मलं पूतिगन्धि बीभत्सं
पश्यन्नङ्गमनङ्गा-द्विरमति यो ब्रह्मचारी स: ॥143॥
अन्वयार्थ : [मलबीजं] शुक्र-शोणित-रूप मल से उत्पन्न, [मलयोनिं] मलिनता का कारण, [गलन्मलं] मलमूत्रादि को झराने वाले [पूतिगन्धि] दुर्गन्ध से सहित [च] और [बीभत्सं] ग्लानि को उत्पन्न करने वाले शरीर को [पश्यन] देखता हुआ [य:] जो [अनङ्गात्] कामसेवन से [विरमति] विरत होता है, [स:] वह ब्रह्मचारी अर्थात् ब्रह्मचर्य प्रतिमा का धारक [कथ्यते] कहलाता है ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

साम्प्रतंब्रह्मविरतत्वगुणंश्रावकस्यदर्शयन्नाह-
अनङ्गात्कामाद्योविरमतिव्यावर्ततेसब्रह्मचारी । किंकुर्वन् ? पश्यन् । किंतत् ? अङ्गंशरीरम् । कथम्भूतमित्याह-मलेत्यादिमलंशुक्रशोणितंबीजंकारणंयस्य । मलयोनिंमलस्यमलिनताया: अपवित्रत्वस्ययोनि: कारणम् । गलन्मलंगलन्स्रवन्मलोमूत्रपुरीषस्वेदादिलक्षणेयस्मात् । पूतिगन्धिदुर्गन्धोपेतम् । बीभत्संसर्वावयेषुपश्यतांबीभत्सभावोत्पादकम् ॥

आदिमति :

जो स्त्री-पुरुष एक-दूसरे के शरीर को देखकर कामादिक से विरक्त होते हैं, वे ब्रह्मचारी हैं। यह शरीर कैसा है? मल / शुक्र / शोणितरूप मल का कारण है । मलयोनि / अपवित्रता का कारण है । इस शरीर से मल, मूत्र, पसीना आदि झरते रहते हैं। यह दुर्गन्ध से सहित है। इसके सभी अङ्गों को देखकर ग्लानि ही उत्पन्न होती है ।