
प्रभाचन्द्राचार्य :
अधुनारात्रिभुक्तिविरतिगुणंश्रावकस्यव्याचक्षाण: प्राह- सचश्रावको । रात्रिभुक्तिविरतोऽभिधीयते । योविभावर्यारात्रौ । नाश्रातिनभुंक्ते । किंतदित्याह - अन्नमित्यादि - अन्नंभक्तमुद्गादि, पानंद्राक्षादिपानकं, खाद्यंमोदकादि, लेह्यंरत्वादि । किंविशिष्ट: ? अनुकम्पमानमना: सकरुणहृदय: । केषु ? सत्वेषुप्राणिषु ॥ |
आदिमति :
वह श्रावक रात्रि भोजन त्याग प्रतिमाधारी कहलाता है, जो अन्न, भात, दाल आदि, पान-दाख आदि का रस, खाद्य—लड्डू आदि और लेह्य-रबड़ी आदि पदार्थों को जीवों पर अनुकम्पा दया करता हुआ रात्रि में नहीं खाता है । |