+ रात्रि भुक्ति त्याग प्रतिमा -
अन्नं पानं खाद्यं लेह्यं नाश्नाति यो विभावर्याम्
स च रात्रिभुक्तिविरत: सत्त्वेष्वनुकम्पमानमना: ॥142॥
अन्वयार्थ : [य:] जो [सत्त्वेषु] जीवों पर [अनुकम्पमानमना:] दयालुचित्त होता हुआ [विभावर्याम्] रात्रि में अन्न, [पानं] पेय, खाद्य और [लेह्यम्] चाटने योग्य पदार्थ को [ण अश्नाति] नहीं खाता है, [स:] वह रात्रिभुक्तित्याग प्रतिमाधारी श्रावक [कथ्यते] कहलाता है ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

अधुनारात्रिभुक्तिविरतिगुणंश्रावकस्यव्याचक्षाण: प्राह-
सचश्रावको । रात्रिभुक्तिविरतोऽभिधीयते । योविभावर्यारात्रौ । नाश्रातिनभुंक्ते । किंतदित्याह - अन्नमित्यादि - अन्नंभक्तमुद्गादि, पानंद्राक्षादिपानकं, खाद्यंमोदकादि, लेह्यंरत्वादि । किंविशिष्ट: ? अनुकम्पमानमना: सकरुणहृदय: । केषु ? सत्वेषुप्राणिषु ॥

आदिमति :

वह श्रावक रात्रि भोजन त्याग प्रतिमाधारी कहलाता है, जो अन्न, भात, दाल आदि, पान-दाख आदि का रस, खाद्य—लड्डू आदि और लेह्य-रबड़ी आदि पदार्थों को जीवों पर अनुकम्पा दया करता हुआ रात्रि में नहीं खाता है ।