+ अनुमति त्याग प्रतिमा -
अनुमतिरारम्भे वा, परिग्रहे ऐहिकेषु कर्मसु वा
नास्ति खलु यस्य समधी-रनुमतिविरत: स मन्तव्य: ॥146॥
अन्वयार्थ : निश्चय से [आरारम्भे] आरम्भ के कार्यों में अथवा [परिग्रहे] परिग्रह में [वा] अथवा [ऐहिकेषु] इस लोक सम्बन्धी [कर्मसु] कार्यों में [यस्य] जिसके [अनुमति] अनुमोदना [न] नहीं है, [स:] वह [समधी:] समान बुद्धि का धारक [अनुमतिविरत:] अनुमतित्याग प्रतिमाधारी [मन्ततव्य:] माना जाना चाहिए ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

साम्प्रतमनुमतिविरतिगुणंश्रावकस्यप्ररूपयन्नाह -
सोऽनुमतिविरतोमन्तव्य: यस्यखलुस्फुटंनास्ति । काऽसौ ? अनुमतिरभ्युपगम: । क्व ? आरम्भेकृष्यादौ । वाशब्द: सर्वत्रपरस्परसमुच्चयार्थ: । परिग्रहेवाधान्यदासीदासादौ । ऐहिकेषुक्रमसुवाविवाहादिषु । किंविशिष्ट: समधी: रागादिरहितबुद्धि: ममत्वरहितबुद्धिर्वा ॥

आदिमति :

जो खेती आदि आरम्भ और धन-धान्य-दासी-दास आदि परिग्रह तथा इस लोक सम्बन्धी विवाह आदि कार्यों में अनुमति नहीं देता है तथा इष्ट, अनिष्ट पदार्थों में समभाव रखता हुआ रागादि रहित होता है, उसे अनुमतित्याग प्रतिमा का धारक जानना चाहिए ।