
विमलयरगुणसमिद्धं सिद्धं सुरसेणवंदियं सिरसा ।
णमिऊण महावीरं वोच्छं आराहणासारं ॥1॥
विमलतरगुणसमृद्धं सिद्धं सुरसेनवन्दितं शिरसा ।
नत्वा महावीरं वक्ष्ये आराधनासारम् ॥१॥
सुर समूह सिर वंद्य नित, निर्मल गुण सुसमृद्ध ।
वन्दन कर उन वीर को, कहूँ साधना शुद्ध ॥१॥
अन्वयार्थ : [विमलयरगुणसमिद्धं] अत्यन्त निर्मल शुद्ध, चैतन्य गुण से परिपूर्ण, [सुरसेणवंदियं] सौधर्मेन्द्र आदि चतुर्णिकाय की देव-सेनाओं से नमस्कृत और [महावीरं] अत्यन्त वीर [सिद्धं] सिद्ध परमात्मा को [सिरसा] सिर से [णमिऊण] नमस्कार कर [आराहणासारं] आराधनासार ग्रन्थ को [वोच्छं] कहूँगा ।