
आराहणाइसारो तवदंसणणाणचरणसमवाओ ।
सो दुब्भेओ उत्तो ववहारो चेग परमट्ठो ॥2॥
आराधनादिसारस्तपो दर्शनज्ञानचरणसमवायः ।
स द्विभेद उक्तो व्यवहारश्चैकः परमार्थः ॥२॥
तप, दृग, ज्ञान चरणमयी, शुभाराधना सार ।
ये विभक्त दो भेद में, निश्चय वा व्यवहार ॥२॥
अन्वयार्थ : [तवदंसणणाणचरणसमवाओ] तप, दर्शन, ज्ञान और चारित्र का समूह [आराहणाइसारो] आराधनासार है [सो] वह आराधनासार [दुब्भेओ] दो भेद वाला [उत्तो] कहा गया है [ववहारो चेग परमट्ठो] एक व्यवहार और एक परमार्थ ।