+ आराधना-रहित की गति -
जीवो भमइ भमिस्सइ भमिओ पुव्वं तु णरयणरतिरियं ।
अलहंतो णाणमईं अप्पा आराहणां णाउं ॥14॥
जीवो भ्रमति भ्रमिष्यति भ्रान्तः पूर्वं तु नरकनरतिर्यग् ।
अलभमानो ज्ञानमयीमात्माराधनां ज्ञातुम् ॥१४॥
भ्रमा, भ्रमेगा, भ्रम रहा, यह चेतन संसार ।
की न आत्म-आराधना, है इससे दुखभार ॥१४॥
अन्वयार्थ : [णाणमई] ज्ञानमयी [अप्पा आराहणां] आत्माराधना को [णाउं] जानकर [अलहंतो] नहीं प्राप्त करने वाला [जीवो] जीव [पुव्वं तु] पहले तो [णरयणरतिरियं] नरक, मनुष्य, तिर्यंच और देवगति में [भमिओ] भटका है [भमइ] वर्तमान में भटक रहा है और [भमिस्सइ] आगे भटकेगा ।