+ संसार को कैसे छोड़े? -
कारणकज्जविभागं मुणिऊण कालपहुदिलद्धीए ।
लहिऊण तहा खवओ आराहउ जह भवं मुवइ ॥13॥
कारणकार्यविभागं मत्वा कालप्रभृतिलब्धीः ।
लब्ध्वा तथा क्षपकः आराधयतु यथाभवं मुञ्चति ॥१३॥
हेतु, हेतुत् जान के, काल-लब्धि कर प्राप्त ।
मुनि करता आराधना, हो भव-भ्रण समाप्त ॥१३॥
अन्वयार्थ : [कारणकज्जविभागं] कारण और कार्य के विभाग को [मुणिऊण] जानकर तथा [कालपहुदि लद्धीए] काललब्धियों को [लहिऊण] प्राप्त कर [खवओ] क्षपक [तहा] उस प्रकार [आराहऊ] आराधना करे [जह] जिस प्रकार [भवं] संसार को [मुवइ] छोड़ सके ।