+ व्यवहार आराधना का प्रयोजन -
भेयगया जा उत्ता चउव्विहाराहणा मुणिंदेहिं ।
पारंपरेण सावि हु मोक्खस्स य कारणं हवइ ॥16॥
भेदगता या उक्ता चतुर्विधाराधना मुनींद्रैः ।
पारंपर्येण सापि हि मोक्षस्य च कारणं भवति ॥१६॥
आराधना में भेद जो, वह व्यवहार प्रमाण ।
परम्परा से वे सभी, देती हैं निर्वाण ॥१६॥
अन्वयार्थ : [मुणिंदेहिं] मुनिराजों के द्वारा [भेयगया] भेद को प्राप्त हुई [जा] जो [चउव्विहाराहणा] चार प्रकार की आराधना [उत्ता] कही गई है [हु] निश्चय से [सावि] वह भी [पारंपरेण] परम्परा से [मोक्खस्स य] मोक्ष का [कारणं] कारण [हवइ] होती है ।