ज्ञानलक्ष्मी घनाश्लेषप्रभवानन्दनन्दितम्
निष्ठितार्थमजं नौमि परमात्मानमव्ययम् ॥1॥
अन्वयार्थ : ज्ञानरूपी लक्ष्मी के दृढ़ आश्लेष से उत्पन्न हुए आनन्द से जो नंदित है, निराकुल है, समृद्ध है, कृतकृत्य है, अजन्मा है, अविनाशी है–ऐसे परमात्मा को मैं नमस्कार करता हूँ ।
वर्णीजी