भुवनाम्भोजमार्तण्डं धर्मामृतपयोधरम्
योगिकल्पतरुं नौमि देवदेवं वृषध्वजम् ॥2॥
अन्वयार्थ : मैं वृषध्वज कहिये वृष का है ध्वज अर्थात् चिह्न जिसका, अथवा वृष कहिये धर्म की ध्वजास्वरूप श्री ऋषभदेव आदि तीर्थकर को नमस्कार करता हूँ । कैसा
है ऋषभदेव ? देवदेव कहिये चार प्रकार के देवों का देव है । इस विशेषण से समस्त देवों के द्वारा पूज्यता दिखाई । फिर कैसा है ? भुवन कहिये लोकरूपी कमल को प्रफुल्लित करने के लिए सूर्य समान है । इस विशेषण से, भगवान के गर्भ-जन्म-कल्याणक में अनेक अतिशय चमत्कार हुए, उनसे लोकमें प्रचुर आनन्द प्रवर्ता ऐसा जनाया है । फिर कैसा है प्रभु ? धर्मरूपी अमृत वर्षने को मेघ के समान है । इस विशेषण से केवलज्ञान प्राप्ति के पश्चात् दिव्यध्वनि से अभ्युदय निःश्रेयस का मार्ग धर्म प्रवर्त्तना प्रगट किया है । फिर कैसा प्रभु ? योगीश्वरों को मनोवांछित फल देने के लिये कल्पवृक्ष के समान है । इस विशेषण से योगीश्वरों को मोक्षमार्ग के साधनेवाले
ध्यान की वांछा होती है, सो उनको यथार्थ ध्यान का मार्ग बतानेवाला है, अर्थात् जो ध्यान हम करते हैं, वही तुम करो, इस प्रकार परंपरा से ध्यान का मार्ग जानकार योगीश्वरण अपनी वांछा को पूर्ण कराते हैं, ऐसा आशय जनाया है ॥2॥
वर्णीजी