
गगननगरकल्पं सङ्गमं वल्लभानाम् ।
जलदपटलतुल्यं यौवनं वा धनं वा ॥
सुजनसुतशरीरादीनि विद्युच्चलानि ।
क्षणिकमिति समस्तं विद्धि संसारवृत्तम् ॥47॥
अन्वयार्थ : हे प्राणी ! वल्लभा आकाश में देवों से रचे हुए नगर के समान है; अतः तुरंत विलुप्त हो जाता है । और तेरा यौवन वा धन मेघ-पटल के समान है, सो भी क्षण में नष्ट हो जानेवाला है । तथा स्वजन, पुत्र शरीरादिक बिजली के समान चंचल हैं । इस प्रकार इस जगत की अवस्था अनित्य जान के नित्यता की बुद्धि मत रख ।
वर्णीजी