
ये चात्र जगतीमध्ये पदार्थाश्वेतनेतरा: ।
ते ते मुनिभिरुद्दिष्टा: प्रतिक्षणविनश्वरा: ॥46॥
अन्वयार्थ : इस जगत में जो-जो चेतन और अचेतन पदार्थ हैं, उन्हें सब महर्षियों ने क्षणक्षण में नष्ट होनेवाले और विनाशीक कहे हैं । यह प्राणी इन्हें नित्यरूप मानता है, यह भ्रममात्र है ।
वर्णीजी